Lord Ganesha is the symbol of wisdom, prosperity and good fortune.
गणेश चतुर्थी की तिथियाँ
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गणेश चतुर्थी क्या है?
इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं।
गणेश चतुर्थी की विशेषताएँ
गणेश चतुर्थी का प्रारंभ
गणेश जी की पूजा की विधि
गणेश जी को प्रसन्न करने के उपाय
लड्डू: बेसन या बूंदी के लड्डू भी गणेशजी को बहुत प्रिय होते हैं और इन्हें चढ़ाने की परंपरा है।
नारियल: पूजा में नारियल का विशेष महत्व होता है। इसे भगवान गणेश के चरणों में अर्पित किया जाता है।
फल: फल जैसे केले, सेब, अंगूर आदि गणेशजी को चढ़ाए जाते हैं।
पान-सुपारी और इलायची: पान का पत्ता, सुपारी, और इलायची भी चढ़ावा के रूप में गणेशजी को अर्पित की जाती है।
ध्यान और भक्ति: इन भौतिक चीजों के अलावा, ध्यान, भक्ति और श्रद्धा भी सबसे महत्वपूर्ण चढ़ावा माने जाते हैं।
दान और सेवा: पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, या धन दान करना भी चढ़ावे का एक रूप माना जाता है।
गणेश मंत्र और भजन: पूजा के समय गणेश मंत्रों का जाप और भजन गाकर भगवान गणेश को प्रसन्न किया जाता है।
वस्त्र और आभूषण: कभी-कभी लोग भगवान गणेश की मूर्ति को वस्त्र या आभूषण चढ़ाते हैं।
दूध और गुड़: कुछ लोग दूध और गुड़ भी भगवान गणेश को अर्पित करते हैं।
गणेश जी के रूप और पूजा के नियम
गणेश जी की मूर्ति की स्थापना से संबंधित कई धार्मिक नियम भी हैं, जैसे कि गणेश जी की सूंड किस तरफ होनी चाहिए?
गणेश जी की मूर्ति की सूंड की दिशा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, और इसे चुनने में विशेष ध्यान दिया जाता है।(LEFT) बाईं ओर (वामावर्ती सूंड):
यह सबसे सामान्य और लोकप्रिय प्रकार की मूर्ति है। गणेश जी की सूंड बाईं ओर होने का अर्थ है कि यह चंद्रमा के समान शीतल और शांति देने वाली मानी जाती है। इसे "वामपंथी" गणेश भी कहा जाता है।
बाईं ओर सूंड वाली गणेश मूर्ति को सौम्य, शांत और सुखदायक माना जाता है। यह परिवार में शांति, समृद्धि और सौहार्द को बढ़ावा देती है।
सामान्यत: घरों में और पूजा स्थलों में बाईं ओर सूंड वाली गणेश मूर्ति की स्थापना की जाती है।
(RIGHT)दाईं ओर (दक्षिणावर्ती सूंड):
गणेश जी की सूंड अगर दाईं ओर हो, तो उसे "दक्षिणावर्ती" गणेश कहा जाता है। यह सूंड सूर्य के समान उग्र मानी जाती है।
दाईं ओर सूंड वाली मूर्ति की पूजा विशेष ध्यान और नियमों के अनुसार करनी होती है, क्योंकि इसे उग्र और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
गणेशजी की शारीरिक संरचना
गणेशजी की शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है।गणेश चतुर्थी पूजन विधि
इस पर्व पर लोग प्रातः काल उठकर सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं।नारद पुराण के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को विनायक व्रत करना चाहिए। यह व्रत करने के कुछ प्रमुख नियम निम्न हैं:
* इस व्रत में आवाहन, प्रतिष्ठापन, आसन समर्पण, दीप दर्शन आदि द्वारा गणेश पूजन करना चाहिए।
* पूजा में दूर्वा अवश्य शामिल करें।
* गणेश जी के विभिन्न नामों से उनकी आराधना करनी चाहिए।
* नैवेद्य के रूप में पांच लड्डू रखें।
* इस दिन रात के समय चन्द्रमा की तरफ नहीं देखना चाहिए, ऐसा माना जाता है कि इसे देखने पर झूठे आरोप झेलने पड़ते हैं।
* अगर रात के समय चन्द्रमा दिख जाए तो उसकी शांति के लिए पूजा करानी चाहिए।
वैसे तो गणेश पूजा का जोश संपूर्ण भारत में नजर आता है लेकिन महाराष्ट्र का गणेशोत्सव दुनियाभर में मशहूर है। यहां इसे विनायक चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
विसर्जन का महत्व
गणेश चतुर्थी के अंत में अनंत चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। यह अनुष्ठान भगवान गणेश के जन्म चक्र का प्रतीक है। जिस प्रकार उन्हें मिट्टी से बनाया गया था, उसी प्रकार उनकी प्रतिमा को भी पानी में विसर्जित किया जाता है ताकि वे वापस अपने दिव्य स्थान पर लौट सकें। यह अनुष्ठान भगवान गणेश की मूर्ति को जलाशय, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित करने की परंपरा है।- भगवान गणेश के पृथ्वी पर आगमन और वापसी का प्रतीक: गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना इस विश्वास के साथ की जाती है कि वे इस दौरान पृथ्वी पर अपने भक्तों के बीच रहते हैं। दस दिनों के बाद विसर्जन का अर्थ है कि भगवान गणेश अपने स्वर्गीय निवास में लौट रहे हैं। यह चक्र भगवान गणेश के पृथ्वी पर आगमन और फिर से अपने दिव्य स्थान पर लौटने का प्रतीक है।
- मिट्टी से बने भगवान गणेश और प्रकृति में वापसी: भगवान गणेश की मूर्तियाँ प्रायः मिट्टी से बनाई जाती हैं, जो पृथ्वी के तत्वों का प्रतीक होती हैं। जब मूर्ति को जल में विसर्जित किया जाता है, तो वह मिट्टी फिर से प्रकृति में विलीन हो जाती है। यह पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक है और सिखाता है कि हर चीज का अंत उसी स्रोत में होता है, जिससे वह उत्पन्न हुई है।
- अहम से मुक्ति और अनासक्ति का प्रतीक: विसर्जन यह भी सिखाता है कि जीवन में किसी भी चीज से अत्यधिक आसक्ति नहीं होनी चाहिए। भक्ति और पूजा के बाद, भगवान की मूर्ति को विसर्जित करना हमें यह सिखाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, और हमें अनासक्ति की भावना को समझना चाहिए। यह हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि सांसारिक चीजों के प्रति अत्यधिक आसक्ति से मुक्ति पाना ही सच्ची भक्ति है।
- पुनर्जन्म और नवीकरण का संकेत: गणेश विसर्जन पुनर्जन्म और नवीकरण का प्रतीक भी है। जिस प्रकार भगवान गणेश की मूर्ति जल में विसर्जित की जाती है और फिर से मिट्टी में परिवर्तित होती है, यह हमें जीवन के चक्र के बारे में याद दिलाती है - जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म। यह प्रक्रिया हर वर्ष नए उत्साह और नवीनीकरण के साथ गणेश चतुर्थी मनाने का संकेत देती है।
- समुदाय और समर्पण की भावना: विसर्जन का आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है, जहां लोग एकजुट होकर भगवान गणेश की विदाई करते हैं। यह समर्पण और समुदाय की भावना को बढ़ावा देता है, जिसमें लोग मिलकर भगवान गणेश को विदाई देते हैं और अगले वर्ष फिर से उनके आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।
- नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धिकरण: विसर्जन के दौरान किए जाने वाले मंत्रों और पूजा-पाठ का उद्देश्य आध्यात्मिक शुद्धिकरण और मन की शांति प्राप्त करना होता है। यह भक्तों को उनके दोषों, पापों और कष्टों से मुक्त करने का प्रतीक है। भगवान गणेश के जल में विलीन होने के साथ ही यह विश्वास किया जाता है कि उनके साथ भक्तों की समस्याएं और कठिनाइयां भी दूर हो जाती हैं।
- परंपरा और संस्कार
गणेश मूर्ति के पीछे दर्पण क्यों रखें?
गणेश मूर्ति के पीछे दर्पण रखने की परंपरा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस प्रथा के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
- ऊर्जा का परावर्तन: दर्पण को ऊर्जा का परावर्तक माना जाता है। गणेश जी की मूर्ति के पीछे दर्पण रखने से उनकी मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पूरे कमरे में फैलती है। ऐसा माना जाता है कि दर्पण के माध्यम से गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद दुगुनी मात्रा में प्राप्त होते हैं।
- प्रभु की उपस्थिति का अनुभव: दर्पण में गणेश जी की छवि दिखाई देती है, जो भक्तों को यह अनुभव कराती है कि भगवान हर जगह उपस्थित हैं। यह उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
- अनंतता का प्रतीक: दर्पण अनंतता का प्रतीक होता है। गणेश जी के पीछे दर्पण रखने से ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान गणेश की शक्ति और कृपा असीमित है, जो भक्तों को अनंत आशीर्वाद प्रदान करती है।
- सजावट और सौंदर्य: कई बार दर्पण को सजावट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह पूजा स्थल को सुंदर और भव्य बनाता है, जिससे वातावरण और भी पवित्र और आध्यात्मिक लगता है।
- समृद्धि और सुख-शांति: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश जी की मूर्ति के पीछे दर्पण रखने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सद्भावना बनी रहती है। दर्पण से भगवान की छवि का परावर्तन घर के वातावरण को सकारात्मक बनाता है।
घर में गणेश जी की कितनी मूर्तियों या फोटो होनी चाहिए?
घर में गणेश जी की मूर्तियों या फोटो की संख्या पर पारंपरिक और धार्मिक मान्यताएँ विभिन्न होती हैं, लेकिन सामान्यतः निम्नलिखित दिशानिर्देश दिए जाते हैं:
सम संख्या (2, 4, 6): अधिकांश धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश जी की मूर्तियों या तस्वीरों की सम संख्या रखना शुभ माना जाता है। जैसे 2, 4, 6 आदि।
सम संख्या में गणेश जी की मूर्तियाँ या तस्वीरें रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि बनाए रखने में मदद मिलती है।
स्थायी प्रतिष्ठान: घर के पूजा स्थल में गणेश जी की एक स्थायी मूर्ति या तस्वीर होनी चाहिए, जिससे नियमित पूजा और आराधना की जा सके।
अस्थायी प्रतिष्ठान: विशेष अवसरों जैसे गणेश चतुर्थी के दौरान आप अस्थायी गणेश जी की मूर्ति या फोटो भी स्थापित कर सकते हैं, जिनका विसर्जन या स्थानांतरण पर्व के बाद किया जाता है।
भव्य पूजा स्थलों पर: बड़े पूजा स्थलों या मंदिरों में अधिक गणेश जी की मूर्तियाँ या तस्वीरें हो सकती हैं, लेकिन घर में सीमित संख्या में रखना अधिक उचित होता है ताकि पूजा स्थल पर एक संतुलन बना रहे।
संबंधित धार्मिक मान्यताएँ: कुछ मान्यताओं के अनुसार, घर में केवल एक गणेश जी की मूर्ति या फोटो रखने की सलाह दी जाती है, ताकि पूजा और ध्यान में एकाग्रता बनी रहे।
गणपति को घर में कहां रखें?
गणपति को घर में स्थापित करने के लिए निम्नलिखित दिशाओं और स्थानों का ध्यान रखना चाहिए:- उत्तरी या उत्तर-पूर्व दिशा: गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर को घर में उत्तर, उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में रखना सबसे शुभ माना जाता है। इस दिशा को सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
- पश्चिम दिशा: पश्चिम दिशा भी गणेश जी की मूर्ति रखने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस दिशा में गणेश जी की उपस्थिति से घर में शांति और सुकून मिलता है।
- मुख्य द्वार के पास: घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर लगाना भी शुभ होता है, खासकर अगर द्वार उत्तर या दक्षिण दिशा में हो। यह घर में प्रवेश करने वाली ऊर्जा को सकारात्मक बनाता है। लेकिन जिस घर में मुख्यद्वार पूर्व या पश्चिम दिशा में हो, वहां गणेश जी की प्रतिमा नहीं लगाना चाहिए।
- पूजा स्थल:पूजा स्थल या पूजा कमरे में गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करना सबसे उचित होता है। इस स्थान पर नियमित पूजा, आराधना और ध्यान किया जा सकता है।
- दक्षिण दिशा से बचें:गणेश जी की मूर्ति को दक्षिण दिशा में नहीं रखना चाहिए। यह दिशा मृत्यु, पाप और नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी मानी जाती है।
- शौचालय या रसोई के पास:गणेश जी की मूर्ति को शौचालय, बाथरूम या रसोई के पास स्थापित नहीं करना चाहिए। इन स्थानों पर धार्मिक और आध्यात्मिक वस्तुओं को रखना उचित नहीं माना जाता।
- गणपति की मूर्ति खरीदते समय इस बात का ध्यान रखें कि बप्पा की मूर्ति में मूषक जरूर हो और उनके हाथ में मोदक भी हो. इस तरह की मूर्ति लाना भी बेहद शुभ माना जाता है. मोदक गणेश भगवान को बेहद प्रिय होता है वहीं मूषक उनका वाहन है.
- घरों के लिए सफ़ेद रंग और सिंदूर के रंग की प्रतिमा की गणपति की मूर्तियाँ सबसे अच्छा विकल्प हैं। सफ़ेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह आपके घर में समृद्धि और शांति लाने में आपकी मदद कर सकता है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार, आम पीपल और नीम से बनी गणेश जी की मूर्ति घर के अंदर जरूर रखनी चाहिए।
गणेश जी को क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?
विसर्जन के विभिन्न दिन:
- 1.5 दिन का विसर्जन: गणेश चतुर्थी के अगले दिन किया जाता है।
- 3 दिन का विसर्जन: स्थापना के तीसरे दिन किया जाता है।
- 5 दिन का विसर्जन: स्थापना के पांचवें दिन किया जाता है।
- 7 दिन का विसर्जन: स्थापना के सातवें दिन किया जाता है।
- 9 दिन का विसर्जन: स्थापना के नौवें दिन किया जाता है।
- 10 दिन का विसर्जन (अनंत चतुर्दशी): यह सबसे आम और पारंपरिक दिन होता है जब अधिकतर लोग भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन करते हैं।
विसर्जन की इस पूरी प्रक्रिया में श्रद्धा, भक्ति और आस्था का विशेष महत्व होता है, जो गणेश चतुर्थी को और भी अधिक पवित्र और धार्मिक बनाता है। विसर्जन न केवल भगवान गणेश के प्रति हमारी आस्था का प्रतीक है.
गणेश जी का मंत्र क्या है?
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।गणेश जी का ये मंत्र सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस मंत्र का अर्थ ये है कि जिनकी सुंड घुमावदार है, जिनका शरीर विशाल है, जो करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, वही भगवान मेरे सभी काम बिना बाधा के पूरे करने की कृपा करें।
108 Names of lord Ganesha
1. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान
4. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाला
5. एकाक्षर : एकल अक्षर
6. एकदन्त : एक दांत वाले
7. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखें वाला
8. गजानन : हाथी के मुख वाले भगवान
9. गजनान : हाथी के मुख वाले भगवान
10. गजवक्र : हाथी की सूंड वाला
11. गजवक्त्र : जिसका हाथी की तरह मुँह है
12. गणाध्यक्ष : सभी गणों के मालिक
13. गणपति : सभी गणों के मालिक
14. गौरीसुत : माता गौरी के पुत्र
15. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले
16. लम्बोदर : बड़े पेट वाले
17. महाबल : बलशाली
18. महागणपति : देवो के देव
19. महेश्वर : ब्रह्मांड के भगवान
20. मंगलमूर्त्ति : शुभ कार्य के देव
21. मूषकवाहन : जिसका सारथी चूहा
22. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता
23. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले
24. शूपकर्ण : बड़े कान वाले
25. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु
26. सिद्धिदाता : इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
27. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी
28. सुरेश्वरम : देवों के देव
29. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड
30. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है
31. अलम्पता : अनन्त देव
32. अमित : अतुलनीय प्रभु
33. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना
34. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु
35. अविघ्न : बाधाओं को हरने वाले
36. भीम : विशाल
37. भूपति : धरती के मालिक
38. भुवनपति : देवों के देव
39. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता
40. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक
41. चतुर्भुज : चार भुजाओं वाले
42. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरी
43. देवांतकनाशकारी : बुराइयों और असुरों के विनाशक
44. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
45. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
46. धार्मिक : दान देने वाला
47. दूर्जा : अपराजित देव
48. द्वैमातुर : दो माताओं वाले
49. एकदंष्ट्र : एक दांत वाले
50. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे
51. गदाधर : जिसका हथियार गदा है
52. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता
53. गुणिन : जो सभी गुणों के ज्ञानी
54. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाला
55. हेरम्ब : माँ का प्रिय पुत्र
56. कपिल : पीले भूरे रंग वाला
57. कवीश : कवियों के स्वामी
58. कीर्त्ति : यश के स्वामी
59. कृपाकर : कृपा करने वाले
60. कृष्णपिंगाश : पीली भूरि आंख वाले
61. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला
62. क्षिप्रा : आराधना के योग्य
63. मनोमय : दिल जीतने वाले
64. मृत्युंजय : मौत को हरने वाले
65. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है
66. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता
67. नादप्रतिष्ठित : जिसे संगीत से प्यार हो
68. नमस्थेतु : सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69. नन्दन : भगवान शिव का बेटा
70. सिद्धांथ : सफलता और उपलब्धियों की गुरु
71. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाला
72. प्रमोद : आनंद
73. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व
74. रक्त : लाल रंग के शरीर वाला
75. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहीते
76. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता
77. सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता
78. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला
79. ओमकार : ओम के आकार वाला
80. शशिवर्णम : जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो
81. शुभगुणकानन : जो सभी गुण के गुरु हैं
82. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है
83. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले
84. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई
85. सुमुख : शुभ मुख वाले
86. स्वरुप : सौंदर्य के प्रेमी
87. तरुण : जिसकी कोई आयु न हो
88. उद्दण्ड : शरारती
89. उमापुत्र : पार्वती के बेटे
90. वरगणपति : अवसरों के स्वामी
91. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
92. वरदविनायक : सफलता के स्वामी
93. वीरगणपति : वीर प्रभु
94. विद्यावारिधि : बुद्धि की देव
95. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले
96. विघ्नहर्त्ता : बुद्धि की देव
97. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले
98. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक
99. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान
100. विघ्नविनाशाय : सभी बाधाओं का नाश करने वाला
101. विघ्नेश्वर : सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान
102. विकट : अत्यंत विशाल
103. विनायक : सब का भगवान
104. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु
105. विश्वराजा : संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय : सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु